Friday, June 12, 2009
बस यूँ ही ...
Its an old poem written by me.. its my first attempt to publish something in Hindi.. :-)
कभी रात के 'सन्नाटे' में 'गूंजती' 'रोशनी'
तो कभी 'दिन' के 'उजाले' में 'सुनसान' वो 'महफ़िल'
लगता है सब अजीब, पर है सब वही
वही तो है, और सोचें तो है भी सही
मन को लगता है कि रोशनी में शोर है
पानी में स्वर्ग है, और सूरज निकलते ही भोर है
पर क्या ये सही है, नहीं ये भी नहीं
'सही' भी 'सही' नहीं, 'नहीं' भी 'नहीं' नहीं
'नहीं' तभी 'नहीं' है, जब 'सही' सही है
पर बिना 'गलत' के 'सही' का अस्तित्व भी सही 'नहीं' है
'हाँ' के बिना 'नहीं' भी 'नहीं' 'नहीं' है
तो ये सोचना कि कया 'सही' है
और क्या 'सही' 'नहीं' है
उतना ही 'सही' नहीं है जितना कि
सोचना कि 'नहीं' ही 'सही' है
परिभाषायें तो बड़ी हैं, पर क्या
हर परिभाषा का तात्पर्य वही है
जो शब्द की है व्याख्या
या उस शब्द से भी परे है
उस शब्द कि मर्यादा और आख्या
चलिये यूँ ही एक शब्द लेते हैं
और अपने प्रश्नों का समाधान
अभी कर लेते हैं
क्या होता है 'प्यार'
हम सुनते हैं जिसे
रोज़ाना, बार-बार, लगातार
शायद तीन घंटे की फिल्म में
हज़ार से भी ज्यादा बार
'शब्द' की परिभाषा से भी परे
है क्या 'प्यार'
क्या दे सकते हैं परिभाषा
इस छोटे से शब्द की
क्या जानना ही 'प्यार' है
या 'जानने' की इच्छा है ये
या फिर ना जान कर भी सोचना
कि यही है प्यार
या फिर 'जान' कर भी पसंद
कहलाता है सही अर्थों में 'प्यार'
क्या आँखों में देखना है 'प्यार'
या फिर आँखें ही ना देखना
देखना उस क्षितिज के पार
साथ-साथ, लगातार है 'प्यार'
किसी को देखना, छूना
ही नहीं संवेदना का व्यवहार
प्यार नहीं लाचार, इन
इंद्रियों से दबा असहाय, बेकार
'प्यार' तो है इंद्रियों से परे
हाँ, ऊपर बहुत ऊपर
मानव को भगवान का साथ
है प्यार
ईश्वर को अपने बच्चे को
दिया गया उपहार
समझना, जानना, जान कर समझना
जानना समझ-समझ कर
नहीं है 'प्यार' किसी संवेदना में
किसी मानव के आकार में
उसके अंदाज़ में, उसके स्पर्श में
या फिर उसकी महक या आवाज़ में
'प्यार' है खुद में
रहता है वहीं, आता है वहीं से
पर उसे जानना, समझना और
करना है किसी का मोहताज़
एक अवलम्बन है व्यक्ति
लगाने को आसक्ति
पर सच्चाई है, आप स्वयं
आपका वज़ूद, आपका वयं
बस यही है 'प्यार'
पर शब्दों में बांधना
नहीं है 'प्यार'
ये तो एक शुरुआत है
'प्यार' से करने की 'प्यार'।।।
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7 comments:
kyaaa baat hai !!
Kiske liye likhi gayi yeh kavita?? :)
@ Mukta.. you forgot your recent post.. caller tune mein bola then 'nothing in the air' aur poem mein likha to sameer.. hawa ka jhonka ho gaya kya!! hehe.. :P
likhi to in general hee thee but uss time pe feelings in general nahin theen.. :P
Ohh...college ke dino ki baat hai kya??
kaun thi? kahan thi? kaisi thi?? ;)
aur waise bhi caller tune lagane mai kya jaata hai? apart from some hard earned money?
But yahan toh aapne kavita likh daali!! Requires soo much thought you see :)
@ Mukta.. firs thing.. why your name is coming this time.. normall 'all time... ' comes na..
na na.. college ki baat nahi hai.. iit aur iim ke beech ke 2 saal ki baat hai.. :-) haan.. kavita likhna caller tune se jyada time leta hai.. but if you just let the words throw in a piece of paper and let the pattern evolve itself, it would come automatically.. do try once.. just write what comes first in your mind.. dont cut or think twice.. just write the first shot.. you would have the poem.. :-) i did just the same.. :-) overflown feelings of mine formed this pattern.. :-)
all the best for exam.. ab to jam ke padhai honi chahiye.. 10 days to go.. i will keep your countdown on facebook.. hehe.. :P
@ PG.. as the quality of PJ goes down by people, actually its increasing in its own world.. hehe.. bada wala PJ.. :P
Ashwini..
ye PJs hamesha se hi itne wierd the or u r on some special diet?? :P
@ PG.. its effect of poverty(sookha of no-monsoon conditions) on jokes to make it even poorer.. BPL. :P
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